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ज़िंदगी कभी एक रास्ते पर नहीं चल सकती. पता ही नहीं चलता कि कब कौन-सा मोड़ टर्निंग प्वॉइंट बन जाए और जिंदगी फट से नया मोड़ ले ले. एक आईआईटियन होने का टैग आपको सच में बहुत कुछ देता है. एक तरह से यह लाइफ का टर्निग टैग है. खैर, आईआईटी में मैंने इस टैग के अलावा और भी बहुत कुछ पाया है.
जिंदगी की बेहद माइन्यूट प्रॉब्लम्स के लिए पॉजिटिव एटिट्यूड से लेकर कई शुरुआती सबक तक , बहुत कुछ है जो आईआईटी ने मुझे दिया. मेरी लाइफ का दूसरा टर्निंग प्वॉइंट था हांगकांग जाना. असल में पढाई खत्म होने के बाद मैंने हांगकांग में एक बैंक ज्वॉइन किया. जिंदगी के इस मोड़ से मुझे बहुत एक्सपोजर मिला. तीसरा टिवस्ट, हम्म ! ऑफ्कोर्स राइटर बनना. फाइव प्वॉइंट समवन के साथ राइटिंग में डेबयू करने का मौका देकर मेरी जिंदगी ने तीसरा टर्न लिया.
ये तो अभी तक की बात है जिंदगी के तीन रुप में किसमें सबसे अधिक सुकून महसूस किया. तो जनाब ! जिंदगी सुकून के लिए नहीं होती. चैलेंज बहुत जरुरी है. हर फील्ड में एंट्री संभव हैं. बेहतर मुकाम पाना भी मुमकिन है. कठिन काम है उसे बचाकर रखना. सिगनिटी के साथ. यह साफ है कि अगर राह मैंने खुद चुनी है तो मंजिल की तलाश भी खुद ब खुद करनी होगी.
मैं सेल्फ मेड हूं. और ऐसा होना पसंद करता हूं. लेकिन मेरे लिए सेल्फ मेड का मतलब एकला चलो रे नहीं है. फैमिली सपोर्ट, दोस्तों का साथ, बच्चे सभी इस प्रोसेस के अहम पार्ट हैं. कई बार जीवन में अचानक भी बहुत कुछ होता है. एक बार कानपुर में मेरे एक दोस्त ने कहा- डू यू नो लाइफ ऑफ काल सेंटर. मैं नहीं जानता था. अचानक कानपुर से दिल्ली जाते वक्त श्रमशक्ति एक्सप्रेस में मुझे इसे जानने का मौका मिला. ट्रेन में ही एक शख्स से मुखातिब हुआ, जिसने मुझे उस अनजान दुनिया से रु-ब-रु कराया. उसकी बातों में इस प्रोफेशनल् दुनिया की तमाम परतें खुल रही थीं और मैं उस हकीकत को जानकर कभी चौंकता था, तो कभी और जानने के लिए बेचैन हो उठता था. मैं जैसे एक ऐसी दुनिया की कहानी सुन रहा था, जिससे मैं ज्यादा वाकिफ नहीं था. वन नाइट एट काल सेंटर का ख्याल भी अचानक ही आया. बाद में इसके बारे में सोचता रहा और उसे लिखा. बाद की कहानी आप जानते ही हैं. इसे लोगों ने हाथों-हाथ लिया. आज भी लोग मिलते हैं तो मेरी बुक की चर्चा जरुर करते हैं.
कभी कभी मैं सोचता हूं कि आज से दस साल बाद चेतन भगत कहॉ होगा. अजीब बात है, मुझे खुद नहीं पता कि आज से दस साल बाद मैं कौन सी मंजिल ढूंढ़ रहा होऊंगा. यही है आज का नर्वसनेस और एक्साइटमेंट अक्सर मैं आज में जीने की कोशिश करता हूं और आगे के बारे में बहुत ज्यादा नहीं सोचता. तब भी नहीं जब लोग मुझे यंगस्टर्स का आइकन या किंग कहते हैं. मेरे लिए ये ऑनर है, लेकिन उससे भी बडी रिस्पांसिबिलिटी का अहसास होता है. ये रिस्पांसिबिलिटी ही तो है. यंग जेनरेशन मेरी ओर देखती है तो मुझे लगता है कि मुझे भी उनका ख्याल रखना चाहिए, शायद उनके बारे में सोचे बिना मैं रह ही नहीं सकता. इसलिए अपनी स्टोरीज और कॉलम्स में उनकी प्रॉब्लम्स उनके तरीके से उठाता हूं. तमाम टिवस्ट एंड टर्न के बीच ऐसा करते हुए इनमें ही आज के चेतन भगत को ढूंढ़ता हूं.
Published in INEXT, Dec 2009 – Foundation Week.
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